Workbook Answers of Sukhi Daali - Ekanki Sanchay
सूखी डाली - एकांकी संचय |
अवतरणों पर आधारित प्रश्न
"वह तमीज़ तो बस आप लोगों की है " मैंने कहा तुम तो लड़ती हो। मैं तो सिर्फ यह
कहना चाहती थी कि नौकर से काम लेने का भी ढंग होता है।
(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? कथन का आशय संदर्भ-सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वक्ता इंदु है और श्रोता बड़ी बहू है। परिवार की छोटी बहू बेला सम्पन्न घराने की है और परिवार में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी भी है। उसने परिवार में पिछले दस वर्षों से काम कर रही मिश्रानी रजवा को यह कहकर काम से हटा दिया कि उसे काम करना नहीं आता। जब इंदु ने भाभी को समझाया कि नौकर से काम लेने की तमीज़ होनी चाहिए, तब छोटी बहू ने ये शब्द कहे।
(ख) वक्ता का परिचय दीजिए।
उत्तर : इंदु दादा मूलराज की पोती है। जो कि सबसे अधिक पढ़ी-लिखी समझी जाती है। उसने प्राइमरी स्कूल में बड़ी सफलतापूर्वक शिक्षा पाई है। घर में उसकी चलती भी खूब है और दादा अपनी इस पोती को बहुत प्यार भी करते हैं।
(ग) “वह तमीज़ तो बस आप लोगों को है।" - यह वाक्य किसने, किससे कहा ? इस कथन से उसके स्वभाव की किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर : यह वाक्य परिवार की छोटी पतोहू, जो घर में छोटी बहू के नाम से पुकारी जाती है, ने इंदु से कहे। अपने मायके परिवार की संपन्नता और तौर-तरीकों पर नाज़ है। हर बात पर वह अपने मायके का बड़प्पन दिखाती है और छोटी-छोटी बात पर क्रोधित हो उठती है।
(घ) बेला का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर : बेला एकांकी 'सूखी डाली' की प्रमुख स्त्री पात्र है, जो दादा मूलराज के पोते नरेश की पत्नी है। वह लाहौर के प्रतिष्ठित एवं संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। उसे अपने परिवार की संपन्नता तथा तौरतरीकों पर नाज़ है। वह छोटी-छोटी बात पर क्रोधित हो उठती है। वह दूसरों की भावनाओं को नहीं समझती। वह अपने पति परेश का भी आदर नहीं करती। अंत में वह अपने परिवर्तित परिवार से सबका आदर पाती है।
और वह ढंग मुझे नहीं आता, मैंने नौकर तो यहीं आकर देखे हैं।" फिर कहने लगीं,
“काम लेने का ढंग उसे आता है, जिसे काम की परख हो।
(क) उपर्युक्त कथन किसका है ? उसके संबंध में बताइए।
उत्तर : उपर्युक्त कथन छोटी बहू बेला का है। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है। उसे अपने परिवार की संपन्नता पर बहुत नाज़ है, इसीलिए हर बात पर वह अपने मायके का बड़प्पन दिखाती है। वह ज़रा-ज़रा सी बात पर नाराज़ हो जाती है।
(ख) उपर्युक्त कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : बेला ने परिवार में पिछले दस वर्षों से काम कर रही रजवा को यह कहकर काम से हटा दिया कि उसे काम करना नहीं आता। जब इंदु ने भाभी को समझाया कि नौकर से काम लेने का भी ढंग होता है, तब बेला ने यह बात कही।
(ग) वक्ता ने अपने परिवार के बारे में क्या कहा ?
उत्तर : बेला हर समय अपने मायके परिवार का बड़प्पन दिखाती है। वह हर बात पर कहती है मेरे मायके में ऐसा होता है, मेरे मायके में ऐसा नहीं होता। नौकरों से काम भी वही ले सकता है, जिसे काम की परख हो। उसके मायके में ऐसी गँवार मिश्रानी दो दिन छोड़, दो घड़ी भी नहीं टिक सकती।
(घ) इंदु कौन है ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर : इंदु दादा मूलराज की पोती है। जो कि सबसे अधिक पढ़ी-लिखी समझी जाती है। उसने प्राइमरी स्कूल में बड़ी सफलतापूर्वक शिक्षा पाई है। घर में उसकी चलती भी खूब है और दादा अपनी इस पोती को बहुत प्यार भी करते हैं।
मेरे मायके में यह होता है ; मेरे मायके में यह नहीं होता।(हाथ मटकाकर) अपने और
अपने मायके के सामने तो वह किसी को कुछ गिनती ही नहीं। हम तो उसके लिए मूर्ख
गँवार और असभ्य हैं।
(क) प्रस्तुत अवतरण किस एकांकी से लिया गया है ? उपर्युक्त पंक्तियाँ किसने, किससे, किस संदर्भ में कही हैं ?
उत्तर : प्रस्तुत अवतरण 'सूखी डाली' एकांकी से लिया गया है। उपर्युक्त पंक्तियाँ 'इंदु' ने परिवार की बड़ी बहू को तब कहीं, जब बेला ने परिवार की सबसे पुरानी नौकरानी रजवा को यह कहकर काम से निकाल दिया कि इसे तो काम करना ही नहीं आता है और हर बात पर वह अपने मायके का बड़प्पन दिखाती है।
(ख) 'वह किसी को कुछ गिनती ही नहीं ' - 'वह' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उसके मायके में किस प्रकार का वातावरण था ?
उत्तर : 'वह' शब्द का प्रयोग परिवार की छोटी बहू व परेश की पत्नी बेला के लिए किया गया है। उनके अनुसार उसका परिवार संपन्न है। उसके घर में नौकर-चाकर हैं। उसे अपने ससुराल के परिवार वालों के रहनसहन और तौर-तरीके अच्छे नहीं लगते । वह अपने मायके वालों के सामने ससुराल वालों को कुछ नहीं समझती।
(ग) उसके मायके और ससुराल के वातावरण में क्या अंतर है ?
उत्तर : बेला का मायका परिवार एक संपन्न परिवार है, जहाँ अनेक नौकर चाकर हैं। वहाँ संबंधों को अधिक महत्त्व न देकर नौकर-चाकरों, अच्छे फर्नीचर और अच्छे तौर-तरीकों को अधिक महत्त्व दिया जाता है, परंतु उसका ससुराल एक संयुक्त परिवार है, जिसे परिवार के मुखिया दादा मूलराज ने एक वट वृक्ष की भाँति एकता के सूत्र में बाँध कर रखा है। वहाँ दिखावे की अपेक्षा संबंधों को अधिक महत्त्व दिया जाता है और परिवार के हर सदस्य का सम्मान उसकी आयु और संबंध के अनुसार होता है।
(घ) उसका मन ससुराल में क्यों नहीं लगता ? अपनी गृहस्थी अलग बसाने के लिए वह क्या चाहती है ?
उत्तर : बेला का मन ससुराल में इसलिए नहीं लगता क्योंकि उसे इस घर की कोई वस्तु पसंद नहीं आती और अपने मायके को लेकर उसमें दर्प की भावना बहुत अधिक है तथा उसे घर का कोई सदस्य पसंद नहीं करता, सब उसकी निंदा करते हैं इसलिए वह अपनी गृहस्थी अलग बसाना चाहती है। वह चाहती है कि बाग वाला मकान उसे मिल जाए, तो वह सुख-शांति से रह सकती है।
'फिर कैसे चलेगा? हमारे घर में तो मिलकर रहना, बड़ों का आदर करना, अपने घर की
रूखी को दूसरी की चुपड़ी से अच्छा समझना, नौकरों पर दया और छोटों
(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? कथन का संदर्भ स्पष्ट करें।
उत्तर : वक्ता छोटी भाभी है और श्रोता बड़ी बहू है। जब बड़ी बहू ने यह कहा कि बेला को हमारा खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना आदि कुछ भी पसंद नहीं है और उसे हमारे, हमारे पड़ोस से, हमारी हर बात से घृणा है, तो उसकी बात सुनकर छोटी बहू ने उपर्युक्त वाक्य कहा।
(ख) फिर कैसे चलेगा ? वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : -अपनी बहू बेला की बातें सुनकर छोटी भाभी चिंतित हो जाती है कि यदि उसे हमारे घर का रहन-सहन, खाना-पीना, ओढ़ना-पहनना कुछ भी नहीं पसंद, तो उस का इस घर में रहना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इस घर में तो सब मिलजुलकर रहते हैं।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों में वक्ता अपने परिवार की किस विशेषता का उल्लेख कर रहा है ?
उत्तर : उपर्युक्त पंक्तियों में छोटी भाभी अपने परिवार के बारे में बताते हुए कहती है कि इस घर में तो सब मिलजुलकर रहते हैं, यहाँ बड़ों का आदर होता है, अपने घर की रूखी को भी दूसरी की -एकांकी संचय- चुपड़ी से बेहतर समझा जाता है, यहाँ नौकरों से दया का व्यवहार होता है और छोटों को प्रेमपूर्वक रखा जाता है।
(घ) वक्ता के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर : वक्ता छोटी भाभी बेला की सास है और इंदु की माँ है। वह बहुत सीधी-सादी महिला है। उसे संयुक्त परिवार के मूल्यों की जानकारी है। वह बहुत समझदार है। इंदु और बड़ी भाभी के द्वारा छोटी बहू की आलोचना करने पर भी वह अपनी बहू को 'बच्ची है' कहकर बात टालना चाहती है। वह बड़े प्यार से अपनी बहू को हर बात समझाती है।
इस फर्नीचर पर हमारे दादा बैठते थे, पिता बैठते थे, चाचा बैठते थे। उन लोगों को
कभी शर्म नहीं आई, उन्होंने कभी फर्नीचर के गले सड़े होने की शिकायत नहीं की।
(क) उपर्युक्त वाक्य का संदर्भ लिखिए।
उत्तर : जब बेला ने अपने कमरे में से सारा पहले वाला फर्नीचर निकालकर बाहर रख दिया और कहने लगी कि वह इन टूटी-फूटी कुर्सियों और गले सड़े फर्नीचर को अपने कमरे में नहीं रहने देगी तब परेश ये शब्द कहता है।
(ख) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? दोनों का परिचय दीजिए।
उत्तर : वक्ता मँझली बहू है, जो परेश के कहे हुए शब्द मँझली और बड़ी बहू को बता रही है। परेश दादा मूलराज का पोता है, जो नायब तहसीलदार है। मँझली बहू परिवार की मँझली भाभी है। वह बहुत ही प्रसन्न चित्त महिला है। हर बात पर हँसना उसका स्वभाव है।
(ग) फर्नीचर के संबंध में किसका कथन उद्धृत किया जा रहा है ?
उत्तर : फर्नीचर के संबंध में दादा मूलराज के पोते परेश का कथन उद्धृत किया जा रहा है।
(घ) परेश का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर : परेश दादा मूलराज का पोता है, जो नायब तहसीलदार है। उसका विवाह लाहौर के एक प्रतिष्ठित परिवार की सुशिक्षित कन्या से हुआ है। वह दादा जी का बहुत सम्मान करता है, इसलिए अपनी पत्नी के व्यवहार आदि के संबंध में खुलकर बात करने का साहस नहीं जुटा पाता। वह दबी जुबान में दादा जी से कहता है कि उसकी पत्नी आज़ादी चाहती है, परंतु दादा जी के समझाने पर वह उनकी बात को नतमस्तक होकर स्वीकार कर लेता है। वह बड़ों का सम्मान करता है।
'तुम भी बहन, बस. क्या इतना पढ़-लिखकर छोटी बहू कपड़े धोएगी?'
(क) उपर्युक्त वाक्य किसने, किससे, किस संदर्भ में कहा है ?
उत्तर : उपर्युक्त वाक्य बड़ी भाभी ने छोटी भाभी से तब कहा, जब इंदु ने अपनी माँ को बताया कि दादा जी के कपड़े गुसलखाने में पड़े हैं और बेला भाभी ने उन्हें धोया नहीं है। तब छोटी भाभी अपनी बहू को समझाने की बात करती है।
(ख) छोटी बहू कौन है ? वह किस पारिवारिक परिवेश से आई है ?
उत्तर : छोटी बहू दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है।/ वह लाहौर के प्रतिष्ठित एवं संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। उसे अपने परिवार की संपन्नता तथा तौर-तरीकों पर नाज़ है। उसका परिवार संयुक्त परिवार नहीं है। उसके घर में स्वच्छंदता का वातावरण था, इसलिए उसे सम्मिलित परिवार में रहने का अनुभव नहीं था।
(ग) वह परिवार से क्यों अलग होना चाहती थी ?
उत्तर : बेला का मन ससुराल में इसलिए नहीं लगता क्योंकि उसे इस घर की कोई वस्तु पसंद नहीं आती और अपने मायके को लेकर उसमें दर्प की भावना बहुत अधिक है तथा उसे घर का कोई सदस्य पसंद नहीं करता, सब उसकी निंदा करते हैं इसलिए वह अपनी गृहस्थी अलग बसाना चाहती है। वह चाहती है कि बाग वाला मकान उसे मिल जाए, तो वह सुख-शांति से रह सकती है। पुस्तिका-एकांकी संचय] [29]
(घ) वह बात-बात में किस बात की चर्चा करती रहती है ?
उत्तर : छोटी बहू बेला बात-बात में अपने परिवार की संपन्नता और तौर-तरीकों पर नाज़ करती है और कहती है कि उसके मायके में यह होता है, उसके मायके में यह नहीं होता। अपने मायके के सामने वह किसी को कुछ नहीं समझती।
'मैं कहा करता हूँ न बेटा कि एक बार वृक्ष से जो डाली टूट गई, उसे लाख पानी दो,
उसमें वह सरसता न आएगी और हमारा यह परिवार बरगद के इस महान पेड़ की भाँति है।'
(क) वक्ता कौन है ? उसके मन में ये विचार किस घटना को देखकर आए ?
उत्तर : वक्ता दादा मूलराज हैं, जो कि परिवार के मुखिया हैं। उनका मंझला बेटा कर्मचंद उनके पास बैठकर उनके पाँव दबा रहा है और बच्चे आँगन में खेल रहे हैं। उन्होंने वट की पूरी डाल लाकर आँगन में लगा दी है और उसे पानी दे रहे हैं। उस समय दादा जी ने उपर्युक्त वाक्य कहा।
(ख) वक्ता ने अपने परिवार की तुलना बरगद के पेड़ से क्यों की है ?
उत्तर : वक्ता दादा मूलराज ने अपने परिवार की तुलना बरगद के पेड़ से इसलिए की क्योंकि वट वृक्ष की अनेक डालियाँ होती हैं, जो कि आपस में मज़बूती से जुड़ी होती हैं, इसी प्रकार दादा जी का परिवार भी आपसी संबंधों में मजबूती से जुड़ा था। परिवार के सभी सदस्यों में सांमजस्य और आत्मीयता थी। जिस प्रकार सभी डालियाँ वृक्ष का हिस्सा होती हैं, चाहे वे छोटी हों या बड़ी; उसी प्रकार दादा जी के परिवार में बच्चे, युवा तथा इससे अधिक आयु के स्त्री-पुरुष भी उस परिवार के अटूट हिस्से की तरह थे। उनमें छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था।
(ग) “एक बार वृक्ष से जो डाली टूट गई, उसे लाख पानी दो, उसमें वह सरसता न आएगी।' इस कथन से वक्ता का क्या आशय है ?
उत्तर : यह कथन दादा मूलराज ने कहा था कि जिस प्रकार यदि वृक्ष से एक डाली टूट कर अलग हो जाए, और फिर उसे कितना ही पानी क्यों न दिया जाए, परंतु वह फिर से हरी नहीं हो पाती, उसी प्रकार यदि परिवार में एक भी दरार पड़ जाए या वह बिखर जाए, तो कितना ही प्रयत्न क्यों न किया जाए, परिवार फिर से नहीं जुड़ पाता।
(घ) उपर्युक्त कथन किस एकांकी से लिया गया है ? उसमें एकांकीकार ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर : उपर्युक्त कथन "सूखी डाली' एकांकी से लिया गया है। एकांकी के माध्यम से उपेन्द्रनाथ अश्क ने यह संदेश दिया है कि यदि दूरदर्शिता, सूझबूझ और समझदारी से काम लिया जाए, तो पारिवारिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है और परिवारों को टूटने से बचाया जा सकता है। एक बार परिवार में यदि एक अलग हो जाए, तो फिर प्रयत्न करने पर भी वह एक नहीं हो सकता।
बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं - बड़प्पन तो मन का होना चाहिए। और फिर बेटा घृणा
को घृणा से नहीं मिटाया जा सकता।
(क) वक्ता और श्रोता का परिचय दीजिए तथा कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वक्ता दादा हैं, जिनका नाम मूलराज है। वे परिवार के मुखिया हैं, जिन्होंने अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति सँजोकर रखा है। श्रोता कर्मचंद है, जोकि दादा का मँझला लड़का है। ।
(ख) वक्ता और श्रोता का संबंध स्पष्ट करते हुए वक्ता के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : वक्ता परिवार के मुखिया दादा जी हैं, जिनका नाम मूलराज है और श्रोता उनका मँझला बेटा कर्मचंद है। वक्ता दादा मूलराज ने अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति सँजोकर रखा है। उन्होंने अपनी परिश्रमशीलता, दूरदर्शिता एवं लगन के कारण अपनी जमीन को दस गुणा बढ़ाया। जब उन्हें परेश के अलग होने की संभावना का पता चलता है, तो वे अत्यंत बुद्धिमानी, सूझबूझ और व्यवहार कुशलता से स्थिति को संभाल लेते हैं । यद्यपि पूरे परिवार पर उनका नियंत्रण है, तथापि उन्हें तानाशाह नहीं कहा जा सकता।
(ग) 'मन में बड़प्पन' से वक्ता का क्या आशय है ?
उत्तर: दादा मूलराज कर्मचंद से कहते हैं कि बड़प्पन बाहर की वस्तु नहीं है, उसे तो अपने व्यवहार से अनुभव कराया जा सकता है। यदि बहू को घृणा के बदले घृणा के स्थान पर प्यार और आदर-सत्कार देंगे, तो के उसकी घृणा धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। इसी को बड़प्पन कहते हैं।
(घ) छोटी बहू कौन है ? उसके चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:: छोटी बहू दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है। उसे अपने मायके परिवार की संपन्नता तथा तौर-तरीकों पर नाज़ है। वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठती है। वह दूसरों की भावनाओं को नहीं समझती। परंतु जब वह दादा जी की परेशानी को समझती है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है और वह सबका आदर पा जाती है।
दूंठा वृक्ष आकाश को छूने पर भी अपनी महानता का सिक्का हमारे दिलों पर उस समय
तक नहीं बैठा सकता, जब तक अपनी शाखाओं में वह ऐसे पत्ते नहीं लाता, जिनकी शीतल
सुखद छाया मन के समस्त ताप को हर ले और जिसके फूलों की भीनी-भीनी सुगंध हमारे
प्राणों में पुलक भर दे।
(क) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : वक्ता दादा मूलराज जी हैं और श्रोता उनका मँझला बेटा कर्मचंद है। जब दादा जी का मँझला बेटा कर्मचंद दादा जी को बताता है कि छोटी बहू में अभिमान की मात्रा ज़रूरत से भी ज्यादा है। वह अपने मायके घर को इस घराने से ज्यादा बड़ा समझती है और इस घर को घृणा की दृष्टि से देखती है, तब दादा जी ने उपर्युक्त कथन कहा।
(ख) वक्ता का परिचय दीजिए।
उत्तर : वक्ता दादा मूलराज एकांकी के प्रमुख पात्र हैं, जिन्होंने अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति सँजोकर के रखा है। उसकी आयु 72 वर्ष है, परंतु वे पूर्ण स्वस्थ हैं। वे हर समस्या की गंभीरता को समझते हैं तथा परिस्थितियों के अनुकूल निर्णय लेते हैं।
(ग) वक्ता ने बड़प्पन एवं महानता के संबंध में क्या-क्या कहा है ?
उत्तर : दादा मूलराज ने ढूँठे वृक्ष के उदाहरण से स्पष्ट किया कि कोई भी परिवार केवल बड़ा होने से बड़ा तथा महान नहीं हो सकता। परिवार का बड़प्पन एवं महानता इसी बात में है कि वह उस में रहने वाले सभी सदस्यों को स्नेह दे, उनकी समस्याओं को शांति से सुलझाए और सबको प्रसन्न रखे।
(घ) 'सूखी डाली' एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 'सूखी डाली' एकांकी में एक संयुक्त परिवार की कथावस्तु का चित्रण किया गया है। एकांकीकार का उद्देश्य यह चित्रित करना है कि यदि परिवार का मुखिया दूरदर्शी, बुद्धिमान तथा व्यवहार कुशल हो, तो परिवार के सदस्यों के विचारों एवं स्वभाव में भिन्नता होते हुए भी, वे सब एकता की डोर से बँधे रहते हैं।
तुम्हारी बहू को रजाई के अबरे और मलमल का थान पसंद नहीं आया। तुम्हारे ताऊ ठहरे
पुराने समय के आदमी, वे नए फैशन की चीजें खरीदना क्या जाने ?
(क) उपर्युक्त कथन किसने, किससे तथा किस संदर्भ में कहा है ?
उत्तर : उपर्युक्त कथन दादा मूलराज ने अपने पोते परेश से तब कहे जब उनका मँझला बेटा कर्मचंद उन्हें बताकर जाता है कि उसने मलमल के थान और रज़ाई के अबरे लाकर दिए थे। और तो सबने रख लिए, पर छोटी बहू को वे पसंद नहीं आए।
(ख) रज़ाई के अबरे और मलमल के थान के अलावा बहू को कौन-सी चीज़ पसंद नहीं थी ?
उत्तर : रज़ाई के अबरे और मलमल के थान के अलावा बहू को उस घर का फर्नीचर भी पसंद नहीं आया, जिसे वह पुराना, टूटा-फूटा, गला-सड़ा और बेडौल बताती है।
(ग) 'ताऊ' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? उन्होंने दादा जी से 'बहू' के संबंध में क्या बात कही थी?
उत्तर : 'ताऊ' शब्द का प्रयोग यहाँ दादा जी मूलराज के मँझले बेटे तथा परेश के ताऊ जी कर्मचंद के लिए किया गया है। उन्होंने कहा था कि उनके द्वारा लाए गए मलमल के थान और रज़ाई के अबरे बहू को पसंद नहीं आए। अपने मायके घराने को वह इस घराने से बड़ा समझती है और इस घर को घृणा की दृष्टि से देखती है।
(घ) वक्ता ने श्रोता को इस समस्या से निपटने के लिए क्या सुझाव दिया ?
उत्तर : दादा मूलराज अपने पोते परेश से कहते हैं कि उसके ताऊ पुराने समय के आदमी हैं, इसलिए उन्हें नए फैशन की - चीजें खरीदनी नहीं आतीं। इसलिए वह छोटी बहू को बाज़ार ले जाए ताकि वह अपने पसंद की चीजें ले सके।
इतना जल्दी उसका मन कैसे लग सकता है बेटा, अभी कै दिन हुए हैं उसे आए ? फिर
बेटा मन लगता नहीं लगाया जाता है।
(क) उपर्युक्त वाक्य किसने, किस संदर्भ में किससे कहा है ?
उत्तर : उपर्युक्त वाक्य दादा मूलराज ने अपने पोते परेश को तब कहा, जब उसने बहुत झिझक के साथ दादा को बताया कि इस घर में उसकी पत्नी बेला का मन नहीं लगता।
(ख) वक्ता ने उपर्युक्त वाक्य श्रोता की कौन-सी बात सुनकर कहा ?
उत्तर :जब मूलराज के पोते परेश ने दादा जी को बताया कि इस घर में उसकी पत्नी बेला का मन नहीं लगता
(ग) श्रोता ने इस बात का क्या उत्तर दिया ?
उत्तर : परेश ने अपने दादा को बताया कि वह इस घर में मन लगाती ही नहीं है।
(घ) श्रोता की बात सुनकर वक्ता ने पुनः क्या कहा ?
उत्तर : परेश की बात सुनकर दादा ने फिर कहा कि यदि वह अपना मन नहीं लगाती, तो हमें उसका मन लगाना चाहिए। वह एक बड़े घर से आई है। कभी नाते-रिश्तेदारों में नहीं रही। इस भीड़-भाड़ में वह घबराती होगी। हम सब मिलकर इस घर में उसका मन लगाएँगे।
और फिर मेरी आँखों के सामने इस महान वृक्ष की कलियाँ टूटने लगती हैं और वह केवल ढूँठ रह जाता है। (स्वर धीमा, जैसे अपने आप से कह रहे हैं) और मैं सिहर उठता हूँ। न बेटा, मैं अपने जीते जी यह सब न होने दूंगा। तुम चिंता न करो। मैं सबको समझा दूंगा।
(क) 'महान वृक्ष और उसकी कलियाँ' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : एकांकीकार ने दादा मूलराज के एक बड़े संयुक्त परिवार को महान वृक्ष कहा है और उस परिवार के सभी सदस्यों को उसकी कलियाँ बताया है।
(ख) वक्ता कौन है और वे क्या सोचकर सिहर उठते हैं तथा क्यों ?
उत्तर : वक्ता दादा मूलराज हैं। वे यह सोचकर सिहर उठते हैं कि वट वृक्ष की भाँति सँजोकर रखे गए परिवार में से कहीं कोई एक सदस्य अलग न हो जाए। :
(ग) वक्ता ने अपने परिवार को एकजुट रखने में किस प्रकार सफलता प्राप्त की ?
उत्तर : दादा मूलराज ने अपने परिवार को एक वट वृक्ष के समान माना। परिवार का हर सदस्य वट वृक्ष की डाली के समान उसका अंग है। छोटे पोते परेश की पत्नी बेला के आ जाने से परिवार में अशांति का वातावरण बन जाता है, परंतु दादा जी ने सभी को समझाया और परिवार को टूटने से बचा लिया। उन्होंने अपनी बुद्धिमानी, व्यवहार कुशलता और दूरदर्शिता से सारे परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखा।
(घ) 'सूखी डाली' एकांकी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : 'सूखी डाली' एकांकी का शीर्षक अत्यंत सार्थक है। दादा मूलराज ने परिवार को एक वट वृक्ष के समान माना है और परिवार का हर सदस्य वट वृक्ष की डाली के समान उसका अंग है। दादा जी सब कुछ सह सकते हैं, पर परिवार से किसी का पृथक होना नहीं। वे कहते हैं कि इससे पहले कोई डाली पेड़ से टूटकर अलग हो, वह ही इस घर से अलग हो जाएँगे। एकांकी के अंत में बेला भी कहती है कि आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए। इस प्रकार घटनाओं का संबंध सूखी डाली से है। इस प्रकार एकांकी का शीर्षक सार्थक है।
बड़ा वास्तव में कोई उमर से या दर्जे में नहीं होता। बड़ा तो बुद्धि से होता
है, योग्यता से होता है।
(क) प्रस्तुत कथन का वक्ता कौन है ? यह वाक्य किसके लिए कहा गया है और क्यों ?
उत्तर : प्रस्तुत कथन दादा मूलराज ने कहे। यह वाक्य छोटी बहू और परेश की पत्नी के लिए कहा गया है क्योंकि वह अत्यधिक पढ़ी-लिखी है। वह ग्रेजुएट है तथा इस परिवार में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी है।
(ख) वक्ता ने जिसके विषय में यह वाक्य कहा है, उसका वक्ता से क्या संबंध है ? उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : दादा मूलराज ने यह वाक्य बेला के लिए कहा है, जो उनकी छोटी पतोहू है। बेला लाहौर के प्रतिष्ठित एवं संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। उसे अपने परिवार की संपन्नता तथा तौर-तरीकों पर बहुत नाज़ है। वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठती है। वह दूसरों की भावनाओं को नहीं समझती। परंतु जब वह दादा जी की परेशानी को समझती है, तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है और वह सबका आदर पा जाती है।
(ग) उपर्युक्त कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :इस कथन का आशय है कि अपनी आयु /अथवा पद के कारण कोई बड़ा नहीं होता। बड़ा वही कहलवाने योग्य है, जो अपनी काबिलियत और बुद्धि में बड़ा हो।
(घ) 'सूखी डाली' एकांकी का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 'सूखी डाली' एकांकी में एक संयुक्त परिवार की कथावस्तु का चित्रण किया गया है। एकांकीकार का उद्देश्य यह चित्रित करना है कि यदि परिवार का मुखिया दूरदर्शी, बुद्धिमान तथा व्यवहार कुशल हो, तो परिवार के सदस्यों के विचारों एवं स्वभाव में भिन्नता होते हुए भी, वे सब एकता की डोर से बँधे रहते हैं।
यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल
वायु को स्पर्श से झूमें और सरसाएँ।
(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : उपर्युक्त कथन दादा मूलराज ने इंदु से तब जब उन्हें पता चलता है कि का मन इस परिवार में नहीं लग रहा है। वे चाहते हैं कि कोई इस कुटुंब से अलग न हो। इसलिए वे .एकांकी. संचय. बहू बेला परिवार के सभी सदस्यों को अपने पास बुलाते हैं। वे इंदु और मँझली बहू से कहते हैं कि उन्हें बेला की कभी हँसी नहीं उड़ानी चाहिए। उससे कभी लड़ना नहीं चाहिए, बल्कि उसका सम्मान करना चाहिए।
(ख) इनके फलने-फूलने से वक्ता का क्या आशय है ?
उत्तर : जिस प्रकार एक पेड़ की डालियाँ जब फलती-फूलती हैं अर्थात् जब उनका विकास होता है, तभी उस पेड़ का अस्तित्व होता है, उसी प्रकार जब एक परिवार के सभी बड़े और छोटे सदस्य मिलजुल कर रहते हैं, प्रसन्न रहते हैं तथा जीवन में विकास करते हैं, तभी उस परिवार का भी अस्तित्व बना रहता है। दादा मूलराज भी चाहते हैं कि उनके परिवार के सभी सदस्य मिलजुलकर प्रसन्नता पूर्वक एक साथ रहें।
(ग) श्रोता के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : इंदु दादा मूलराज की पोती है, जिसे कि परिवार में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा समझा जाता है। उसने हाई स्कूल में बड़ी सफलतापूर्वक शिक्षा प्राप्त की है। घर में उसकी बहुत चलती है।। दादा भी अपनी इस पोती को बहुत प्यार करते हैं। वह बहुत समझदार है। दादा जी के समझाने पर वह उनसे क्षमा माँग लेती है और भविष्य में मौका न देने का वादा करती है।
(घ) वक्ता के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : वक्ता परिवार के मुखिया दादा जी हैं, जिनका नाम मूलराज है और श्रोता उनका मँझला बेटा कर्मचंद है। वक्ता दादा मूलराज ने अपने परिवार को एक वट वृक्ष की भाँति सँजोकर रखा है। उन्होंने अपनी परिश्रमशीलता, दूरदर्शिता एवं लगन के कारण अपनी जमीन को दस गुणा बढ़ाया। जब उन्हें परेश के अलग होने की संभावना का पता चलता है, तो वे अत्यंत बुद्धिमानी, सूझबूझ और व्यवहार कुशलता से स्थिति को संभाल लेते हैं। यद्यपि पूरे परिवार पर उनका नियंत्रण है, तथापि उन्हें तानाशाह नहीं कहा जा सकता।
पल में तोला पल में माशा इनका कुछ भी तो पता नहीं चलता। गर्म होते हैं तो आग बन
जाते हैं और नर्म होते हैं तो मोम से भी कोमल दिखाई देते हैं। आज जिस बात को
बुरा कहते हैं, कल उसी की प्रशंसा करते हैं।
(क) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? उनका परिचय दीजिए।
उत्तर : उपर्युक्त कथन की वक्ता और श्रोता बेला है। वह अपने आप से ही कह रही है। बेला दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है।
(ख) 'पल में तोला पल में माशा' वाक्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : इस वाक्यांश का अर्थ है कि जब जल्दी-जल्दी व्यक्ति अपने विचार बदलने लगता है। इस एकांकी में परेश की पत्नी बेला अपने ससुराल के परिवार के सदस्यों के बारे में कह रही है कि इन्हीं लोगों को पहले मेरी कोई बात पसंद नहीं थी और बात-बात पर मुझे टोका जाता था परंतु अब वही लोग मुझे इतना आदर-सत्कार क्यों दे रहे हैं ?
(ग) वक्ता के अनुसार उसे किस प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है और क्यों ?
उत्तर : बेला के अनुसार उसे अजीब तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। पहले परिवार के वही सदस्य उसका निरादर करते थे, उसकी हँसी उड़ाया करते थे, परंतु अब उन्हीं सदस्यों का व्यवहार इस हद तक बदल गया कि वे बेला को ज़रूरत से ज्यादा सम्मान देने लगे। इसी कारण वह फिर से स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगी थी।
(घ) बेला के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : छोटी बहू दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है। उसे अपने मायके परिवार की संपन्नता तथा तौर-तरीकों पर नाज़ है। वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो उठती है। वह दूसरों की भावनाओं को नहीं समझती। परंतु जब वह दादा जी की परेशानी को समझती है तो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है और वह सबका आदर पा जाती है।
मैंने एक अनुभवी नौकरानी खोज लाने के लिए कह दिया है। जो नए फैशन के बड़े घरों
में काम कर चुकी हो।
(क) बेला ने इंदु से नौकरानी के बारे में क्या कहा था ?
उत्तर : बेला ने परिवार में पिछले दस वर्षों से काम करती आ रही मिश्रानी रजवा को यह कहकर काम से हटा दिया कि उसे काम करना नहीं आता। इंदु के इस बारे में पूछने पर बेला ने कहा कि न जाने तुम लोग इन फूहड़ नौकरों से किस तरह गुज़ारा कर लेते हो। मेरे मायके में तो ऐसी गँवार मिश्रानी दो दिन छोड़ दो घड़ी भी न टिकती।
(ख) उपर्युक्त वाक्य किसने किससे कहा था ?
उत्तर : उपर्युक्त वाक्य मँझली भाभी ने बेला से कहा था।
(ग) वक्ता ने नौकरों के संबंध में दादा जी की किस बात का उल्लेख किया ?
उत्तर : मँझली भाभी ने बेला को बताया कि वास्तव में दादा जी पुराने नौकरों के हक में हैं। वे ईमानदार, सच्चे और विश्वसनीय होते हैं।
(घ) वक्ता ने रजवा के संबंध में बेला को क्या बताया तथा बेला को क्या सुझाव दिया ?
उत्तर : मँझली भाभी ने रजवा के संबंध में बेला को बताया कि हमारे घर में नौकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी काम करते आ रहे हैं। इस रजवा की सास भी यहीं काम करती थी, अब रजवा की बहू भी यहीं काम करती है। तुम रजवा की बहू को ही अपने पास रख लो। उसकी उमर भी कम है और वह काम भी जल्दी सीख जाएगी।
आप मुझे क्यों काँटों में घसीटती हैं ? आप मेरे साथ क्यों परायों का-सा व्यवहार
करती हैं ?
(क) वक्ता और श्रोता कौन-कौन हैं ? दोनों का परिचय दीजिए।
उत्तर : वक्ता बेला है और श्रोता बड़ी बहू है। बेला दादा मूलराज के पोते परेश की पत्नी है। वह परिवार की सबसे छोटी बहू है। वह बात-बात पर अपने मायके परिवार का बड़प्पन दिखाती है। बड़ी भाभी परिवार की सबसे बड़ी बहू है, जो कि बहुत ही सीधी-सादी महिला है।
(ख) 'काँटों में घसीटने' का आशय एवं संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 'काँटों में घसीटना' मुहावरे का अर्थ है - संकट में डालना। बेला जब देखती है कि परिवार के सभी सदस्य उससे बहुत आदर-सत्कार से बात कर रहे हैं, उसे वर्ग और बुद्धि में अपने आप से बड़ा बता रहे हैं, तब बेला ने यह वाक्य कहा था।
(ग) वक्ता ने उपर्युक्त कथन किन परिस्थितियों में कहा है और क्यों ?
उत्तर : बेला जब महसूस करती है कि परिवार के सभी सदस्यों का व्यवहार उसके प्रति एकदम बदल जाता है। जिस बात के लिए उसे डाँटा जाता था, उसी बात का समाधान वे सब स्वयं खोज रहे हैं। उसका निरादर करने वाले लोग अब उसे ज़रूरत से अधिक सत्कार दे रहे हैं, तब उसे कुछ समझ में नहीं आता कि यह बदलाव क्यों और कैसे हुआ ?
(घ) उपर्युक्त कथन के आधार पर वक्ता की मानसिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर : बेला जब देखती है कि परिवार के सभी सदस्यों का व्यवहार उसके प्रति इस हद तक बदल गया कि वे बेला को ज़रूरत से अधिक सम्मान देने लगे, तब बेला स्वयं को उपेक्षित-सी महसूस करने लगती है। उसे लगता है कि जैसे वह परायों में आ गई हो।
आप मुझे मेरे मायके भेज दीजिए ? मुझे ऐसे लगता है, जैसे मैं अपरिचितों में आ गई
हूँ।
(क) उपर्युक्त कथन किसने, किससे, किस संदर्भ में कहा है ?
उत्तर : उपर्युक्त कथन बेला अपने पति परेश से तब कहती है, जब वह परिवार के सदस्यों का अपने प्रति ज़रूरत से अधिक सम्मान का व्यवहार देखती है, तब उसे उनके व्यवहार में इतने बदलाव का कारण समझ में नहीं आता।
(ख) वक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था?
उत्तर : बेला अपने पति से कहती है कि जब वह परिवार की महिलाओं के पास जाती है, तो सब उसे देखकर खड़ी हो जाती हैं, उसके सामने कोई हँसता नहीं, कोई अधिक समय तक उससे बात नहीं करता। सभी उससे बहुत ज्यादा डरती हैं। सभी उसके सामने चुप हो जाती हैं।
(ग) उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह अपरिचितों में आ गई है ?
उत्तर : उसे इसलिए लगने लगा कि वह अपरिचितों में आ गई है क्योंकि उसे कोई नहीं समझता है। कोई उसे काम को हाथ नहीं लगाने देता। सभी उसका इस प्रकार आदर करते हैं, जैसे वही घर में सबसे बड़ी हो। किसी में उसे अपनेपन का अहसास नहीं होता।
(घ) वक्ता की बात सुनकर श्रोता ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर : बेला की बात सुनकर उसका पति कहता है कि उसे समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या चाहती है ? पहले उसे शिकायत थी कि कोई उसका आदर नहीं करता, उसे सबसे दबना पड़ता है और वही सबका काम करती है और अब उसे शिकायत है कि सब उसका आदर करते हैं, अब सब उससे दबते हैं, और अब सब उसका काम करते हैं। वह कहता है कि न जाने वह क्या चाहती है ?
Join the conversation