Workbook Answers of Mahayagya Ka Purashkar - Sahitya Sagar
महायज्ञ का पुरस्कार - साहित्य सागर |
अकस्मात् दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुंह देखना पड़ा'। 'संगी-साथियों ने भी मुँह फेर लिया।
(क) सेठ के चरित्र की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर : धनी सेठ अत्यंत विनम्र एवं उदार प्रवृत्ति के थे। कोई भी साधु-संत उनके
द्वार से निराश नहीं लौटता था, भर-पेट भोजन पाता। गरीब होने पर भी उन्होंने अपनी
कर्तव्य भावना को विस्मृत नहीं किया। स्वयं भूखे रहकर भी एक क्षुधाग्रस्त कुत्ते
को अपनी चारों रोटियाँ खिला दीं। कहानी के अंत में भी उन्होंने ईश्वर से यही
प्रार्थना की—'हे प्रभु! मेरी कर्तव्य-बुद्धि को जगाए रखना। मैं स्वयं कष्ट सहकर
दूसरों के कष्ट कम कर सकूँ, ऐसी बुद्धि और शक्ति मुझे देना।'
(ख) 'संगी-साथियों ने भी मुँह फेर लिया'-पंक्ति द्वारा समाज की किस दुर्बलता की
ओर संकेत किया गया है?
उत्तर: समाज की यह कमज़ोरी है कि गरीब व्यक्ति को कोई सम्मान नहीं देता, और न ही
उसका कोई मित्र बनता है। इसके विपरीत अमीर व्यक्ति को सब सम्मान देते हैं, हर कोई
उनका मित्र बनना चाहता है और उसके निकट आना चाहता था। गरीब व्यक्ति के दोस्त,
मित्र, संबंधी आदि सब साथ छोड़ जाते हैं।
(ग) उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी?
सेठानी ने सेठ को क्या सलाह दी?
उत्तर : उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था।
छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ होता, उन्हीं के अनुसार उसका मूल्य मिल जाता था।
(घ) सेठानी की बात मानकर सेठ जी कहाँ गए? धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या
अफ़वाह थी?
उत्तर : जब सेठानी ने अपने पति को अपना एक यज्ञ बेच डालने की प्रार्थना की, तो
पहले सेठ जी बहुत दुखी हुए, पर बाद में अपनी तंगी का विचार कर अपना एक यज्ञ बेचने
के लिए वहाँ से दस-बारह कोस की दूरी पर कुंदनपुर नाम के एक नगर में गए, जिसमें एक
बहुत बड़े सेठ रहते थे। लोग उन्हें धन्ना सेठ कहते थे। धन्ना सेठ की पत्नी के
बारे में यह अफ़वाह थी कि उसे कोई दैवी शक्ति प्राप्त है जिसके कारण यह तीनों
लोकों की बात जान लेती है।
सेठ जी, यज्ञ खरीदने के लिए तो हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना पड़ेगा।
(क) वक्ता कौन है ? उसका उपर्युक्त कथन सुनकर सेठ जी को क्यों लगा कि उनका मज़ाक
उड़ाया जा रहा है?
उत्तर: वक्ता धन्ना सेठ की पत्नी है। जब धन्ना सेठ की पत्नी ने यज्ञ बेचने के लिए
आए सेठ से कहा कि यज्ञ खरीदने के लिए तो वे तैयार हैं, परंतु उन्हें अपना महायज्ञ
बेचना होगा। तब उन्हें लगा कि शायद सेठानी उनकी हँसी उड़ा रही हैं क्योंकि
महायज्ञ की बात तो छोड़िए, सेठ ने बरसों से कोई सामान्य यज्ञ भी नहीं किया था।
(ख) सेठानी के अनुसार सेठ जी ने कौन-सा महायज्ञ किया था?
उत्तर : सेठानी के अनुसार रास्ते में स्वयं न खाकर चारों रोटियाँ भूखे कुत्ते को
खिला दीं, यह महायज्ञ नहीं तो और क्या है ! यज्ञ कमाने की इच्छा से धन-दौलत
लुटाकर किया गया यज्ञ सच्चा यज्ञ नहीं है, नि:स्वार्थ भाव से किया गया कर्म ही
सच्चा यज्ञ महायज्ञ है।
(ग) सेठानी की बात सुनकर यज्ञ बेचने आए सेठ जी की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर : सेठ जी सोचने लगे कि भूखे को अन्न देना सभी का कर्तव्य है। उसमें यज्ञ
जैसी क्या बात है ! सेठ जी ने कोई उत्तर दिए बिना चुपचाप अपनी पोटली उठाई और
हवेली से बाहर चले गए। उन्हें मानवोचित कर्तव्य का मूल्य लेना उचित न लगा।
(घ) यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर : सेठ जी अत्यंत विनम्र और दयालु थे। वे इतने धर्म परायण थे कि उनके द्वार
से कभी कोई साधु-संत निराश न लौटता था, भर पेट भोजन पाता। जो भी हाथ पसारता, वही
पाता। उन्होंने बहुत-से यज्ञ किए थे और दान में न जाने कितना धन दीन-दुखियों में
बाँट दिया था।
सेठ ने आद्योपांत सारी कथा सुनाई। कथा सुनकर सेठानी की समस्त वेदना जाने कहाँ विलीन हो गई।
(क) सेठ जी को खाली हाथ वापस आते देखकर सेठानी की क्या प्रतिक्रिया
हुई और क्यों?
उत्तर : सेठ जी को खाली हाथ वापस आया देख सेठानी आशंका से काँप उठी। पूछे जाने पर
सेठ जी ने शुरू से अंत तक सारी कथा कह सुनाई। उनकी बात सुनकर सेठानी की सारी
वेदना विलीन हो गई। उसका हृदय उल्लसित हो उठा। वह सोचने लगी, धन्य हैं मेरे पति,
जिन्होंने विपत्ति में भी धर्म नहीं छोड़ा। उसने सेठ के चरणों की धूलि मस्तक पर
लगाते हुए कहा कि धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे। उसे ईश्वर पर असीम विश्वास था।
(ख) सेठ ने आद्योपांत जो कथा सुनाई, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : सेठ ने अपनी पत्नी को बताया कि जब वे सेठ के यहाँ पहुँचे तो उन्होंने
अपने आने का कारण बताया। तभी सेठ की पत्नी ने कहा कि हम यज्ञ खरीदने के लिए तैयार
हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना होगा। मेरे यह बताने पर कि मैंने तो बरसों से
कोई यज्ञ नहीं किया है, वह बोली कि आपने आज ही महायज्ञ किया है। आपने रास्ते में
स्वयं भूखे रहकर एक भूखे कुत्ते को अपनी चारों रोटियाँ खिला दीं, यह महायज्ञ नहीं
तो क्या है? क्या आप इसे बेचने को तैयार हैं ? परंतु मैं किसी भूखे को अन्न देना
केवल कर्तव्य मानता हूँ, यज्ञ नहीं। इसलिए मैंने चुपचाप अपनी पोटली उठाई और वापस
आ गया।
(ग) सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना क्यों विलीन हो गई?
उत्तर : सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना विलीन हो गई थी। उसका हृदय यह
देखकर उल्लसित हो गया था कि उनके पति ने विपत्ति में भी धर्म नहीं छोड़ा था। उनका
मानना था कि सच्ची कर्तव्य भावना और निस्स्वार्थ भाव से किया गया कर्म अवश्य फल
देता है। उसने अपने पति को धैर्य बँधाया तथा ईश्वर पर भरोसा रखने को कहा।
(घ) 'महायज्ञ का पुरस्कार' कहानी के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर : कहानी का संदेश है कि सच्ची कर्तव्य भावना एवं निस्स्वार्थ भाव से किया
गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता। इस प्रकार के कर्म का फल अवश्य प्राप्त
होता है। जीवों पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। नर सेवा ही नारायण सेवा
होती है। स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव-धर्म है।
केवल दिखाने के लिए किया गया यज्ञ महत्त्वहीन होता है।
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