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Workbook Answers of Bhede Aur Bhediyen - Sahitya Sagar

Workbook Answers of Bhede Aur Bhediyen - Sahitya Sagar
भेड़े और भेड़िये - साहित्य सागर


पशु  समाज में इस क्रांतिकारी परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गई कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण युग आया और वह आया।


(क) वन के पशुओं ने एक मत से क्या तय किया और क्यों? 'वन में प्रजातंत्र की स्थापना' का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : वन के पशुओं ने एक मत से तय किया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना होनी चाहिए, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि अब वे सभ्यता के ऐसे स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए। वन-प्रदेश में भेड़ें बहुत थीं, इसलिए प्रजातंत्र स्थापित होने पर पंचायत में उन्हीं का बहुमत होगा, वे ही राज करेंगी।


(ख) 'क्रांतिकारी परिवर्तन' का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : क्रांतिकारी परिवर्तन का अर्थ है कि जब पंचायत में भेड़ों का बहुमत होगा, तो वे ही कानून बनाएँगी कि कोई जीवधारी किसी को न सताए, न मारे। सब जिएँ और जीने दें। समाज शांति, स्नेह, बंधुत्व और सहयोग पर आधारित हो।


(ग) जंगल में हर्ष की लहर क्यों दौड़ गई? सुख-समृद्धि और सुरक्षा के स्वर्ण युग का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : पशु-समाज को लगा कि वन में प्रजातंत्र की स्थापना होने से सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण युग आ जाएगा। सुख-समृद्धि और सुरक्षा का अर्थ है कि अब भेड़ों का भय दूर हो जाएगा। भेड़ों का बहुमत होगा, इससे वे ही कानून बनाएँगी, जिसमें सबको बिना किसी भय के जीने का अधिकार होगा।


(घ) जंगल में किस प्रकार का प्रजातंत्र आया? उसका क्या परिणाम निकला? क्या सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण युग आया ?

उत्तर : जंगल में चुनाव हुआ। भेड़ों ने भेड़िए को अपना प्रतिनिधि चुना। पंचायत में पहला कानून बनाया गयाहर भेड़िए को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया जाए, दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को आधी भेड़ दी जाए। जंगल में सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग नहीं आया। सीधी-सादी भेड़ों ने स्वार्थी और धोखेबाज भेड़ियों के बहकावे में आकर भेड़िए को ही अपना राजनेता चुन लिया और वे उनका शोषण करने लगे।


बूढ़े सियार ने बड़ी गंभीरता से पूछा, 'महाराज, आपके मुखचंद्र पर चिंता के मेघ क्यों छाए हैं ?


(क) 'महाराज' शब्द का प्रयोग किस के लिए किया गया है ? उसकी चिंता का क्या कारण था और क्यों?

उत्तर : 'महाराज' शब्द का प्रयोग भेड़िए के लिए किया गया है। उसकी चिंता का कारण वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना था। यदि पंचायत में भेड़ों का बहुमत हो गया और यह कानून बना दिया गया कि कोई पशु किसी को न मारे, तो वे क्या खाएँगे?


(ख) सियार ने उसकी बात सुनकर क्या उत्तर दिया? इस उत्तर से उसके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ?

उत्तर : भेड़िए की बात सुनकर सियार ने अपने दाँत निपोर कर कहा कि हम क्या जाने महाराज! हमारे तो आप ही 'माई-बाप' हैं। हम तो कोई और सरकार नहीं जानते। आपका दिया खाते हैं, आपके गुण गाते हैं। इस उत्तर से पता लगता है कि वह चापलूस और मौका-प्रस्त है, जो भेड़िए की हाँ-में-हाँ मिलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेता है।


(ग) भेड़िए ने सियार को कौन-सी बात बताई और इस संदर्भ में अपनी किस कठिनाई का उल्लेख किया ?

उत्तर : भेड़िए ने वन-प्रदेश की पंचायत के चुनाव की बात बूढ़े सियार को समझाई और बड़े उदास मन से कहा, कि चुनाव पास आता जा रहा है। अब यहाँ से भागने के सिवा कोई चारा नहीं, पर जाएँ भी कहाँ।


(घ) बूढ़े सियार ने भेड़िए को उस कठिनाई से मुक्ति पाने के कौन-से दो उपाय बताए ? भेड़िए ने उनके उत्तर में क्या कहा?

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए को उस कठिनाई से मुक्ति पाने के लिए पहला उपाय बताया कि वह सरकस में भरती हो जाए। पर भेड़िए ने कहा कि वहाँ भी शेर और रीछ को लेते हैं, हम इतने बदनाम हैं कि हमें वहाँ भी कोई नहीं पूछता। फिर सियार ने दूसरा उपाय बताया कि अजायबघर में चले जाएँ। भेड़िए ने उत्तर दिया कि वहाँ भी जगह नहीं है क्योंकि वहाँ तो आदमी रखे जाने लगे हैं।


मुसीबत में फँसे भेड़िए ने आखिर सियार को अपना गुरु माना और आज्ञापालन की शपथ ली।


(क) भेड़िया किस मुसीबत में फँस गया था ? सियार ने उसे उस मुसीबत से निकालने के लिए क्या आश्वासन दिया ?

उत्तर : भेड़िए को पता लग गया था कि अब उसका संकटकाल आ गया है। जंगल से अब उनका राज समाप्त होने वाला है। सियार ने उसे आश्वासन दिया कि आप उदास मत होइए। एक दिन का समय दीजिए। कल तो कोई योजना बन जाएगी। आपको मेरे कहे अनुसार चलना होगा।


(ख) बूढ़े सियार ने तीन सियारों को किस-किस रंग में रंग कर क्या-क्या रूप दिया है और क्यों ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने तीन सियारों में से एक को पीले रंग में, दूसरे को नीले रंग तथा तीसरे को हरे रंग में रंग दिया। पीले रंग वाले सियार को विद्वान, विचारक, कवि और लेखक बताया। नीले रंग के सियार को नेता और स्वर्ग का पत्रकार बताया और हरे रंग के सियार को धर्मगुरु का प्रतीक बताया। बूढ़ा सियार चाहता था कि रँगे सियार भेड़िए का प्रचार करें और अपनी मीठी-मीठी बातों से भेड़ों को गुमराह कर दें, जिससे कि वे भेड़िए को ही चुनें।


(ग) बूढ़े सियार ने भेड़िए का रूप किस प्रकार बदला और क्यों ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए के मस्तक पर तिलक लगाया, गले में कंठी पहनाई और मुँह में घास के तिनके खोंस दिए। सियार ने भेड़िए का रूप इसलिए बदला क्योंकि वह उसे संत बनाकर भेड़ों की सभा में ले जाना चाहता था ताकि भेड़ें धोखा खाकर गुमराह हो जाएँ और भेड़िए को ही चुनें।


(घ) सियार ने भेड़िए को किन तीन बातों का ध्यान रखने को कहा ?

उत्तर : सियार ने भेड़िए को जिन तीन बातों का ध्यान रखने के लिए कहा, वे हैं-अपनी हिंसक आँखों को ऊपर मत उठाना, हमेशा ज़मीन की ओर देखना और कुछ बोलना मत, नहीं तो सब पोल खुल जाएगी। वहाँ बहुत-सी सुंदर और मुलायम भेड़ें आएँगी, कहीं किसी को तोड़ मत खाना। 'भाइयो और बहनो ! अब भय मत करो। भेड़िया राजा संत हो गए हैं। उन्होंने हिंसा बिल्कुल छोड़ दी है। उनका


हृदय परिवर्तन हो गया है।


(क) 'भाइयो और बहनो'–शब्दों का प्रयोग किसने, कब तथा किसके लिए किया है?

उत्तर : ‘भाइयो और बहनो' शब्दों का प्रयोग बूढ़े सियार ने संत के दर्शन करने आईं हज़ारों भेड़ों के लिए किया। जब भेड़ों ने संत के रूप में भेड़िए को देखा, तो वे वहाँ से भागने लगीं, तब सियार ने ये शब्द कहे थे।


(ख) बूढ़े सियार ने भेड़िए राजा के हृदय-परिवर्तन के संबंध में क्या-क्या कहा ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए राजा के हृदय परिवर्तन के बारे में बताया कि वे आज सात दिनों से घास खा रहे हैं। रात-दिन भगवान के भजन और परोपकार में लगे रहते हैं। उन्होंने अपना जीवन जीव-मात्र की सेवा में लगा दिया है। वे अब किसी का दिल नहीं दुखाते।


(ग) 'भेड़ों से उन्हें विशेष प्रेम है'- बूढ़े सियार ने इस संबंध में भेड़िए के बारे में क्या बताया ?

उत्तर : बूढ़े सियार ने भेड़िए के बारे में बताया कि भेड़ों से उन्हें विशेष प्रेम है। इस जाति ने जो कष्ट सहे हैं, उनको याद कर कभी-कभी भेड़िया संत की आँखों में आँसू आ जाते हैं। उनकी अपनी भेड़िया जाति ने जो अत्याचार आप पर किए हैं, उनके कारण भेड़िया संत का सिर झुका हुआ है। अब वे शेष जीवन आपकी सेवा में लगाकर अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे। अब वे सर्वस्व त्याग चुके हैं। अब आप उनसे भय मत करें। उन्हें अपना भाई समझें।


(घ) बूढ़े सियार ने एक मासूम भेड़ के बच्चे से संबंधित किस झूठी घटना की कहानी सुनाई?

उत्तर : बूढ़े सियार ने बताया कि आज सवेरे एक मासूम भेड़ के बच्चे के पाँव में काँटा लग गया, तो भेड़िए संत ने उसे दाँतों से निकाला, पर जब वह बेचारा कष्ट से चल बसा, तो भेड़िया संत ने सम्मानपूर्वक उसकी अत्येष्टि क्रिया की।


वे बोल नहीं सकते। अब आप इन तीनों रंगीन प्राणियों को देखिए। आप इन्हें न पहचान पाए होंगे। पहचानेंगे भी कैसे? ये इस लोक के जीव तो हैं, नहीं।


(क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ? 'वे बोल नहीं सकते'-वाक्य का प्रयोग किस के लिए किया गया है? वक्ता ने उनके न बोल पाने का क्या कारण बताया है ?

उत्तर : बूढ़ा सियार संत के दर्शन करने आईं हज़ारों भेड़ों को संबोधित है। वे बोल नहीं सकते'-वाक्य संत बने भेड़िए के बारे में कहे। बूढ़ा सियार बोला कि भेड़िया संत का प्रेमवश हृदय भर आया है, वे गद्गद् हो गए हैं और भावों से भरे हुए उनका कंठ अवरुद्ध हो गया है। इसलिए वे बोल नहीं सकते।


(ख) 'इन्हें' शब्द से किन की ओर संकेत किया गया है? उनका परिचय दीजिए।

उत्तर : ‘इन्हें' शब्द का प्रयोग बूढ़े सियार ने तीनों रंगे सियारों के लिए किया। उसने कहा कि ये इस लोक के जीव नहीं हैं। ये स्वर्ग के देवता हैं, जो हमें सदुपदेश देने के लिए ज़मीन पर उतरे हैं। पीले रंग वाले विचारक, कवि और लेखक हैं, नीले रंग वाले नेता और स्वर्ग के पत्रकार हैं और हरे रंग वाले धर्मगुरु हैं। 


(ग) वक्ता ने 'कवि' बनाए गए सियार के संबंध में क्या बताया?

उत्तर : बूढ़े सियार ने कहा कि अब कविराज आप को स्वर्ग-संगीत सुनाएँगे। तभी पीला सियार 'हुआँ-हुआँ' बोल पड़ा। उसे देख शेष सियार भी 'हुआँ-हुआँ' करने लगे। बूढ़े सियार ने चतुराई से बात को संभालते हुए कहा कि कवि भी कोरस में गीत गाते हैं। वे कह रहे हैं कि जैसे स्वर्ग में परमात्मा वैसे ही पृथ्वी पर भेड़िया। भेड़िया जी, आप महान हैं, सर्वत्र व्याप्त हैं, सर्वशक्तिमान हैं। हे विराट! आपके चरणों में इस क्षुद्र का प्रणाम है।


(घ) 'भेड़ें और भेड़िए'-शीर्षक कहानी में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : प्रस्तुत कहानी में भेड़ें सीधे-सादे व्यक्तियों का प्रतीक हैं, जो चालाक, स्वार्थी और धोखेबाज राजनेताओं के बहकावे में आकर उनको सुनते हैं तथा चुने जाने पर भेड़िए रूपी ये राजनेता अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। तथा भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं। इस कहानी के माध्यम से धोखेबाज, झूठे, ढोंगी तथा चालाक राजनेताओं की पोल खोली गई है।